मजदूर के बेटे ने पाया गोल्ड मेडल, आईएएस की तैयारी करना चाहता है पर नही है पैसे देखिए खास रिपोर्ट
बिलासपुर। राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू आज केंद्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर के दीक्षांत समारोह में शामिल हुई। यहां उन्होंने टॉपर विद्यार्थियों को गोल्ड मेडल प्रदान किया। टॉपर छात्रों में एक छात्र ऐसा भी था जिसके पिता मजदूर हैं और उन्होंने मजदूरी करते हुए अपने बेटे को गोल्ड मेडल पाने के योग्य बनाया। आईये जानते हैं उस प्रतिभावान छात्र के बारे में
धनंजय केवर्त ने इकोनॉमिक्स एमए में पोस्ट ग्रेजुएशन में टॉप किया हैं। उन्हें एमए में 87 प्रतिशत मिलें हैं। धनंजय केवर्त बिलासपुर जिले के मल्हार नगर पंचायत के वार्ड क्रमांक 10 के रहने वाले हैं। उनके पिता मनहरण केवर्त एक मजदूर हैं और बिल्डिंग बनने के दौरान मिस्त्री का काम करते हैं। धनंजय केवर्त पांच भाई बहनों में दूसरे नंबर का है। धनंजय का बड़ा भाई भी मिस्त्री का काम करता है। तीसरे नंबर की बहन की शादी हो चुकी है वही घर में दो अन्य बहने हैं जिनके शादी का जिम्मा भी अब धनंजय के कंधों पर है।
धनंजय को बचपन से ही पढ़ने लिखने में रुचि थी। धनंजय को उनके पिता ने सरस्वती शिशु मंदिर मल्हार में भर्ती करवाया था। धनंजय ने बचपन में ही अपनी प्रतिभा का परिचय देना शुरू कर दिया था। उन्होंने नवोदय विद्यालय मल्हार की प्रवेश परीक्षा क्रैक कर नवोदय विद्यालय में प्रवेश लिया। गरीब पिता के लिए यह राहत की बात थी और धनंजय के स्कूल की फीस की चिंता से वो मुक्त हो गए। धनंजय ने मल्हार नवोदय आवासीय विद्यालय में रहते हुए 12वीं तक की शिक्षा ली। उन्हें दसवीं में 86% और 12वीं में 84% मिले। बारहवीं में उनका सब्जेक्ट आर्ट्स रहा।
12वीं पास होने के बाद धनंजय ग्रेजुएशन करने के लिए गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय आ गए। यहां उन्होंने ग्रेजुएशन बीए इकोनॉमिक्स ऑनर्स में किया। बीए में उनका 84% था। इसके बाद एमए इकोनॉमिक्स इन्होंने 87% लाकर उत्तीर्ण की।
धनंजय केवर्त बताते हैं कि कॉलेज की पढ़ाई में उनके टीचर्स ने उन्हें काफी सपोर्ट किया। कोई कंफ्यूजन होने पर टीचर ऑनलाइन ही फोन पर समस्या सुलझा दिया करते थे। इसके अलावा कोरोना के दौरान यहां के शिक्षकों ने ऑनलाइन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पढ़ाई जारी रखवाई थी। धनंजय के अनुसार टीआर रात्रे सर, नमिता शर्मा, किस्पोट्टा सर व एचओडी मनीषा दुबे मैडम ने काफी सहयोग किया।
धनंजय के पिता मनहरण केवर्त बताते हैं कि कॉलेज की फीस भरने के लिए उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। रिश्तेदारों से पैसे उधार लेकर व धनंजय के दोस्तों की मदद से विश्वविद्यालय की फीस जमा की जाती थी। धनंजय बताते हैं की किताबों के लिए वे विश्वविद्यालय की सेंट्रल लाइब्रेरी और डिपार्टमेंट लाइब्रेरी पर निर्भर रहते थे। और जो पुस्तक वहां उपलब्ध नहीं हो पाती थी वह उसे पैसों के अभाव में खरीद नहीं पाते थे । वे उस टॉपिक को ऑनलाइन मटेरियल कलेक्ट कर पढ़ते थे। धनंजय के पिता मनहरण केवर्त अपने बेटे को आईएएस बनाना चाहते हैं। उनका बेटा होनहार भी है पर उनके पास बेटे को आईएएस की कोचिंग करवाने के लिए पैसे नहीं हैं। अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए धनंजय भी बिना कोचिंग घर में मेहनत कर रहें हैं।
ब्यूरो रिपोर्ट