क्या वायनाड और रायपुर दक्षिण का चुनाव स्वयं के स्वार्थ के लिए बीजेपी कांग्रेस ने जनता के समय और पैसा बर्बाद कर दिया

क्या वायनाड और रायपुर दक्षिण का चुनाव स्वयं के स्वार्थ के लिए बीजेपी कांग्रेस ने जनता के समय और पैसा बर्बाद कर दिया

रायपुर। आखिर रायपुर दक्षिण का उप चुनाव समाप्त हो गया, कुछ माह पहले ही वहां चुनाव हुआ था,जनता ने बडे मार्जिन से बीजेपी को बहुमत देकर जीताया और सोचा अब विकास की धारा बहेंगी। पर ये क्या BJP ने अपने विधायक को सांसद बना के भेज दिया, और दक्षिण की जनता को एक चुनाव दीवाली तोफह में दे दिया। जबकि रायपुर लोकसभा से उस वक्त भी कई योग्य चेहरे थे जिन्हें पार्टी टिकट दे सकती थी।

सब जानते है अंदर ही अंदर करोड़ों खर्ज किया जाता है चुनाव में, और जब उपचुनाव की बारी आती है तो पैसा पानी की तरह बहाया जाता है, सरकार की साख लगी रहती है और जीतने के लिये सरकार शाम दाम सब लगा देती है।

पर क्या जनता को चुनाव में फिर से भेजना जरूरी था-  क्या किसी भी राजनीति पार्टी को उपचुनाव में खर्ज होने वाले सरकारी पैसे की कीमत नही पता होता। क्या टैक्स के रूप में जो पैसा जनता देती है वहां विकास कार्यो में न खर्ज हो कि स्वयं के स्वार्थ सिद्ध के लिए पार्टी जो उप चुनाव में खर्ज करवाती है,क्या वह जनता के साथ धोखा नही है। भारत के सभी पोलिटिकल पार्टी को जबरदस्ती थोपी उपचुनाव से कोई परहेज नही है। जनता चाहे परेशान हो, जनता के दिये टैक्स की बर्बादी हो राजनीतिक पार्टी को इससे कोई मतलब नही।

कांग्रेस के सर्वे सर्वा राहुल गांधी ने मन मे आया तो दो जगह से चुनाव लड़ लिए, जबकि उनको पता था अगर वो दोनों चुनाव जीत जाएंगे तो उनको एक सीट छोड़नी पड़ेगी और वहा फिर से चुनाव होगा फिर भी आपने पार्टी हित और अपने पोलिटिकल स्वार्थ के लिए उन्होंने दो जगह से चुनाव लड़ा और वायनाड लोकसभा से इस्तीफा दे दिया और जनता को उपचुनाव का बिना मांगे एक तोहफा।

कोई पार्टी इसको रोकने का प्रयास शायद करना ही नही चाहती, अगर ये नियम आ जाए की जिस पार्टी के कारण वहां उपचुनाव होंगा वो पार्टी चुनाव में भाग नही ले सकती तो शायद उपचुनाव इस्तीफा देने का कारण के वजह से बंद हो जायेगा 

या जिस भी पार्टी के कारण उपचुनाव हुवा है वो या वो प्रत्याशी जो एक से ज्यादा जगह से चुनाव लड़े उसे चुनाव का खर्ज वसूला जाए तो , ऐसी कारण के वजह से होने वाले उपचुनाव को रोका जा सकता है

पर दुर्भाग्य है की यह नियम भी यही पार्टी मिल कर बनाती है। लेकिन ऐसा कोई भी नियम नही बनाना चाहती जिससे उनके स्वयं का अहित है। जब जब विधानसभा, लोकसभा सदस्यों की तन्खा या सुविधा बढ़ाने की बात आती है तब सब पार्टी आपसी लड़ाई भूल के एक हो जाते है, शायद ये उपचुनाव का बदलाव भी मुश्किल है......