ईरान के सर्वोच्च नेता रहे अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी का संबंध उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से था

ईरान के सर्वोच्च नेता रहे अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी का संबंध उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से था

तेहरान। अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी। इस नाम से तो आप जरूर परिचित होंगे। जी हां! ये वही हैं, जिन्होंने ईरान में राजशाही को खत्म कर इस्लामी शासन की स्थापना की थी। वह 1979 से 1989 तक ईरान के सर्वोच्च नेता (रहबरे इंकिलाब) रहे। पर, बहुत कम लोगों को पता होगा कि ईरान को बदलने वाले अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी का संबंध उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से था। उनके दादा सैय्यद अहमद मूसवी हिंदी का जन्म बाराबंकी के किन्तूर गांव में हुआ था, लेकिन परिवार बाद में ईरान के खुमैनी गांव में जाकर बस गया और वहीं जन्म हुआ अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी का। आज ईरान जैसा दिखता है वह अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी की ही देन है।


बाराबंकी में जन्म थे रुहोल्लाह खुमैनी के दादा

अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी के दादा सैय्यद अहमद मूसवी हिंदी का जन्म 1790 में बाराबंकी के किन्तूर में हुआ था। सैय्यद अहमद मूसवी अवध के नवाब के शागिर्द थे। जब वह 40 साल के थे, तब वे अवध के नवाब के साथ धार्मिक तीर्थयात्रा पर ईरान गए। इस दौरान कुछ ऐसा हुआ कि खुमैनी के दादा सैय्यद अहमद मूसवी ईरान के खुमैनी गांव में बस गए। चूंकि वह हिंदुस्तान से ईरान में बसे थे, इसलिए अपने नाम में हिंदी शब्द को जोड़ लिया। इसी गांव में सैय्यद अहमद मूसवी हिंदी के बेटे का जन्म हुआ, जिसका नाम आयतुल्लाह मुस्तफा हिंदी रखा गया।

खुमैनी के पिता ईरान में इस्लाम के बड़े विद्वान बने

अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी के पिता आयतुल्लाह मुस्तफा हिंदी की गिनती इस्लाम के सबसे बड़े जानकारों में होती थी। पूरे ईरान में धर्म को लेकर किसी भी चर्चा के लिए उन्हें बुलाया जाता था। आयतुल्लाह मुस्तफा हिंदी के दो बेटे हुए। छोटे बेटे का नाम अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी रखा गया, जो आगे चलकर इमान खुमैनी के नाम से प्रसिद्ध हुए और ईरानी क्रांति से सूत्रधार बने।

पिता की हत्या ने खुमैनी की सोच बदली

रुहोल्लाह खुमैनी के जन्म के पांच महीने बाद उनके पिता आयतुल्लाह मुस्तफा हिंदी की हत्या कर दी गई। पिता की मौत के बाद रुहोल्लाह खुमैनी का लालन-पालन उनकी मां और मौसी ने किया। बड़े भाई मुर्तुजा ने रुहोल्लाह खुमैनी को इस्लाम की शिक्षा दी। रुहोल्लाह खुमैनी को इस्लामी विधिशास्त्र और शरिया में खास रूचि थी। उन्होंने पश्चिमी दर्शनशास्त्र का भी अध्ययन किया। इस दौरान उन्होंने ईरान के अराक और कोम शहर स्थित इस्लामी शिक्षा केंद्रों में पढ़ाई की और बाद में वहीं शिक्षक बन गए।

राजशाही का विरोध बना देश निकाला का कारण

पढ़ाने के दौरान ही वह राजशाही के खिलाफ हो गए और राजा पहलवी के खिलाफ लोगों को उकसाने लगे। उनका मानना था कि ईरान में राजशाही की जगह विलायत-ए-फ़कीह (धार्मिक गुरु की संप्रभुता) जैसी पद्धति से शासन होना चाहिए। इस कारण पहलवी शासन ने उन्हें देश निकाला दे दिया। इसने बावजूद रुहोल्लाह खुमैनी ने शाह पहलवी और राजशाही का विरोध करना नहीं छोड़ा। राजशाही से तंग ईरानी जनता ने भी रुहोल्लाह खुमैनी को अपना नेता मान लिया और उनके बताए रास्ते पर चलने लगी।

ईरानी राजा ने खुमैनी को कहा था भारतीय मुल्ला

जब पहलवी शासन को लगा कि वे रुहोल्लाह खुमैनी के प्रभाव को नहीं रोक सकते तो उन्होंने दुष्प्रचार शुरू कर दिया। रुहोल्लाह खुमैनी को भारतीय और ब्रिटेन का एजेंट साबित करने के लिए 7 जनवरी, 1978 को इत्तेलात अखबार में उन्हें एक भारतीय मूल का 'मुल्ला' कहा गया, जो अपनी आशिकाना गजलों में मस्त रहता है.। अखबार में खुमैनी को ब्रितानी-भारतीय उपनिवेश का मोहरा घोषित कर दिया। इस लेख के छपने के बाद तो ईरान की क्रांति और भड़क गई और दमन के बावजूद जनता ने सड़कों पर डेरा जमा लिया।

राजा के भागने बाद ईरान लौटे थे खुमैनी

क्रांति को बढ़ता देख ईरान के दूसरे बादशाह आर्यमेहर मुहम्मद रजा पहलवी ने अपने पूरे खानदान के साथ 16 जनवरी, 1979 को देश छोड़ दिया। राजा के देश छोड़ने के 15 दिन बाद रुहोल्लाह खुमैनी वापस ईरान लौटे। लगभग 14 साल के निष्कासन के बाद 1 फरवरी 1979 को उन्होंने ईरान की धरती पर कदम रखा। रुहोल्लाह खुमैनी के स्वागत के लिए ईरान में लाखों की भीड़ उमड़ी। इसके बाद उन्होंने ईरान में शहंशाही को खत्म कर इस्लामी गणराज्य की स्थापना की।