*मघा नक्षत्र से उद्धत है माघ मास,शास्त्रों में बताया विशेष महत्व-आचार्य रजनीकांत शर्मा*
माघ मास की विशेषता*
इस माह से सभी मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। इस माह में पवित्र नदियों के तट पर मेला लगता है। इस माह से सूर्य जब उत्तरायण होने लगता है तो धीरे-धीरे ठंड भी कम होने लगती है। इस माह में हेमंत ऋतु के बाद शिशिर ऋतु का प्रारंभ होता है। माघ महीने की शुक्ल पंचमी से वसंत ऋतु का आगमन होता है। मघा नक्षत्र के कारण इस माह का नाम माघ मास पड़ा।
*माघ मास के महत्त्वपूर्ण व्रत षटतिला एकादशी, तिल चतुर्थी, रथसप्तमी, भीष्माष्टमी, मौनी अमास्या, जया एकादशी, संकष्टी चतुर्थी आदि*।
माघ माह का महत्व*
माघ मास में 'कल्पवास' का विशेष महत्त्व है। 'माघ काल' में प्रयागराज संगम तथा अन्य तीन नदियों के पवित्र संगम तट पर निवास को 'कल्पवास' कहते हैं। माघ माह में जहां कहीं भी जल हो तो ऐसा माना जाता है कि, वह गंगाजल के समान पवित्र हो जाता है। जो भी माघ माह में गंगा स्नान करता हैं लक्ष्मीपति भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करता है। माघ माह में स्नान करने से सुख सौभाग्य, धन-संतान और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मास में शीतल जल के भीतर डुबकी लगाने वाले मनुष्य पापमुक्त हो जाते हैं।
इस पुनीत मास की मान्यता है कि, माघ माह में देवता धरती पर आकर मनुष्य रूप धारण करते हैं और प्रयाग में स्नान करने के साथ ही दान और जप करते हैं। इसीलिए प्रयाग में स्नान का अत्यधिक महत्व है। जहां स्नान करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र हो तो इस तिथि का महत्व और बढ़ जाता है।
माघे निमग्नाः सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।
पद्मपुराण में माघ मास पर वर्णन आया है कि, नित्य पूजा करने से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है। इसलिए सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करना चाहिए।
*'प्रीतये वासुदेवस्य सर्वपापानुत्तये। माघ स्नानं प्रकुर्वीत स्वर्गलाभाय मानवः॥*'
माघ मास में पूर्णिमा को जो व्यक्ति ब्रह्मवैवर्त पुराण का दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। माघ में ब्रह्मवैवर्तपुराण की कथा सुननी चाहिए,, और यदि यह संभव न हो सके तो माघ महात्म्य अवश्य सुनना चाहिए।
अतः इस मास में स्नान, दान, उपवास और भगवान माधव की पूजा अत्यंत फलदायी होती है। महाभारत में आया है कि, माघ मास में जो तपस्वियों को तिल दान करता है, वह नरक का दर्शन नहीं करता। माघ मास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके भगवान माधव की पूजा करने से उपासक को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। अतः इस प्रकार माघ स्नान की अपूर्व महिमा है।
माघ माह के नियम :
1. माघ माह में दरवाजे पर आए हुए किसी भी व्यक्ति को खाली हाथ नहीं लौटाया जाता है। दान पुण्य किया जाता है।
2. इस माह में किसी भी तरह का व्यसन नहीं करना चाहिए।
3. इस माह में तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए।
4. यह माह पुण्य कमाने और साधना करने का माह होता है। अत: इस माह में झूठ बोलना, कटुवचन, ईर्ष्या, मोह, लोभ, कुसंगत आदि का त्याग कर देना चाहिए।
6. इस माह में अच्छे से स्नान करना चाहिए और खुद को शुद्ध एवं पवित्र बनाए रखना चाहिए। इस माह सुबह जल्दी उठकर स्नान करना लाभकारी होता है।
7. माघ माह में तिल गुड़ का सेवन करना लाभकारी होता है।
8. इस माह में यदि एक समय भोजन किया जाए तो आरोग्य तथा एकाग्रता की प्राप्ति होती है।
9. इस माह श्रीहरि के साथ ही श्रीकृष्ण की पूजा करना चाहिए। ऐसा करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
10. इस माह में कल्पवास के नियमों का पालन करना चाहिए।
कल्पवासी के मुख्य कार्य है:- 1.तप, 2.होम और 3.दान।
तीनों से ही आत्म विकास होता है।